एक करवा चौथ ऐसा भी..
करवा चौथ की भरपूर रौनक है. पूरा बाज़ार अटा पड़ा है पूजा की थालियों, फूल, मिठाई, सजावट , रंग बिरंगे कपड़ों और हर कोने पर बैठे मेहंदी वालों से. पूर्णिया में हूँ, बोर हो रही थी तो सोचा चलो बाज़ार घूम आऊँ. ख्याल अच्छा था, सोचा रौनक होगी बाहर, समय कट जायेगा.
और पूरा बाज़ार जगमगा रहा है करवा चौथ के ऑफर से, जहाँ देखो सजी धजी औरतें और खिलखिलाते चेहरे. करवा चौथ मुझे त्यौहार से ज्यादा थोपा हुआ लगता है. एक नितांत लोकल फेस्टिवल जिसे यशराज फिल्म्स ने हमारे ज़ेहन पर उतार् दिया और जोड़ दिया उसे राज और सिमरन की अमर कथा से. किसी का मन न भी करे रखने का तो रोमांटिसिज्म की चाशनी में डूबा हुआ ये त्यौहार आपको बेबस कर देगा कि चलो रखो, कितना प्यार तो है इस प्यार के दूसरे नाम में. और आप सोचेंगे यार क्रेश डाइटिंग तो करते हैं न, ये शाहरुख़ खान वाला त्यौहार भी रख ही लेते हैं.
फिर उन सबके पीछे मैंने उसे देखा, उन दो सूनी आँखों को. एक ऐसी जगह जहाँ रंग बिखरे पड़े थे, सुहाग की निशानियाँ भर भर कर थी, मैंने एक उदास सी औरत को देखा. एक औरत जिसका पति कारगिल में शहीद हो गया था, एक औरत जिसका कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार एक आतंकी हमले से शुरू हो गया था. एक औरत जिसका सुहाग एयर क्रेश में जल गया था, एक औरत जिसका साथी किसी फायरिंग में पीछे छूट गया था.
और इस पूरे करवा चौथ के मेले जैसे तमाशे में दिखी मुझे कितनी ही ऐसी आँखें, पत्थर हो चुकी आँखें, ऐसी आँखें जिनमे विजय दिवस और देशभक्ति का नाम सुन कर भी हलचल नहीं होती, ऐसी आँखें जिनमें शहादत के नारीं सुनकर भी कुछ नहीं जगता, उठती है तो बस एक खीझ कि अकेले क्यूँ छूट गये, एक ऐसे देश के लिये अपनों को पीछे छोड़ गये जो कद्र भी नहीं करता तुम्हारी, एक ऐसे देश के लिये जिसे लगता है कि सैनिक तो मरने के लिये होता है, एक ऐसे देश के लिये जिसे लगता है कि तुम्हें तो पैसे भी हर महीने मरने के लिये दिए जाते थे.
पैसे……….अब मुझसे ले लो पैसे और लौटा दो उस सैनिक को, मुझे भी औरों की तरह करवा चौथ मनाना है.
मैं वापस आ गयी, करवा चौथ की जगमगाती रौशनी में वो आँखें बहुत देर तक मेरा पीछा करती रही.
डॉ. पूजा त्रिपाठी
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