थैंक यू टाइपिस्ट..
कहते हैं अगर कोई आपके लिये कुछ करे तो उसे धन्यवाद करना चाहिये । जो ऐसा नहीं करता वो ख़ुदग़र्ज़ होता है । पर जाने अनजाने में हम समाज के एक ऐसे धड़े को नज़रअन्दाज़ करते आये हैं जिसकी भूमिका हमारे जन्म से मृत्यु तक होती है । ये हमारे साथ हर पल किसी न किसी रूप में रहता है लेकिन हम उसकी उपलब्धियों को नकारते रहते हैं । उसे गले लागाना तो दूर , उससे कई बार ढंग से बात तक नहीं करते हैं । मैं बात कर रहा हूँ उस टाइपिस्ट-उस कंप्यूटर ऑपरेटर की जो हमेशा हमारी उपेक्षा का शिकार होता है ।
एक टाइपिस्ट अपना योगदान हमारे जन्म के रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र छापने के साथ ही देना शुरू कर देता है । ज़रा सोचिये अगर उस प्रमाण पत्र का फॉर्मेट ही गलत छप जाये तो ? स्कूल में पहला क़दम रखते ही हम जिन आम-अमरुद-बस और भी न जाने क्या क्या तस्वीरों को देख कर अपने आसपास को देखना-समझना शुरू करते है उसे एक टाइपिस्ट ही तो छपता है । वहाँ से कॉलेज तक का सफ़र विभिन्न किताबों को पढ़कर तय होता है जिसमें हुई ग़लती हमें पीछे धकेल सकती है । प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करते हुए हम ऐसे कई टाइपिस्ट्स को अनदेखा करते हैं जिनके कारण हम सामाजीकरण के रंग में अपने आप को रंगते हैं । सोंचिये उस अभ्यर्थी का क्या होगा जिसकी हिंदी की परीक्षा में गणित के प्रश्न पूछ लिये जायें ? उस संस्थान की साख़ में कितना बट्टा लगेगा जो आइन्स्टीन की जगह अफ़बाउ के सिद्धान्त पढ़ा बैठे …बस एक छोटी सी चूक और हममें से कइयों का तो सबकुछ बर्बाद हो जायेगा – कुछ का तो शायद हमेशा के लिये …हमारे सफल होने के बाद लोग हमें-हमारे अभिभावकों को – हमारे शिक्षकों को बधाई देते हैं और इन बधाई संदेशों से कोई अछूता रह जाता है तो वो है एक टाइपिस्ट ।
फ़िर ऑफिस में आकर भी एक टाइपिस्ट ही तो है जो रोज़मर्रा के काम को अमली जामा पहनने में मदद करता है – हमारी उपलब्धियों में ख़ामोशी से शामिल रहते हुए ।कोई मेल ग़लत भेज देने का अंजाम इस वैश्वीकरण के दौर में क्या हो सकता है हम जानते हैं । सारा किया कराया पानी हो जाये ।
हम व्यापार करते हैं – शहर – राज्य और देश विदेश में … वहाँ भी कोई मुनीम एक हुण्डी साइन करके देता है , कोई क्लर्क एक मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग छपता है – व्यापारी नाम बनाता है और वो मुनीम -वो क्लर्क गुमनाम रह जाता है ।
सोचिये अगर अखबार में आने वाली ख़बर गलत छप जाये तो ? संपादक क्या उसे समय पर हमतक पहुँचा देगा ? “कुन्ती” की जगह “कुत्ती” हो जाये और फिर देखिये तमाशा …क्या होगा जो गाने के बोल लिखने में ही ग़लती हो जाये ? संगीत के नोट उलटा छाप के क्या हम गाना बना लेंगे ? लगेगा कि हम “हेमन्त कुमार ” साहब की “तुम …पुकार लो “की धुन पे “बेबी डॉल मैं सोने की ” सुन रहे हैं …क्या हो जो पत्र-पत्रिकाओं में “राखी” और “खीरा” में एक दूसरे से बदल जायें ? “फ़िल्मी दुनिया ” से एक दूसरे तरह का “ज़ायका” मिलेगा – बेस्वाद । हमारी मनोरंजन की दुनिया भौंडी हो जाएगी ।
वो सरकारी सूचना से लेकर कोर्ट में न्याय तक दिलवाता है । वो हमें अपने आप से मिलवाता है । नोट हो या वोट , हमें नाम मिले या दाम – एक टाइपिस्ट हर जगह काम आता है । कोई रचना नोबेल ले जाती है तो कोई ग्लोबल हो जाती है पर उस कंप्यूटर ऑपरेटर का नामलेवा शायद ही कोई होता है ।
वो शुरू से हमें देख रहा है पर उसे हमारी उस नज़र का इंतज़ार है जो बस उसके लिये हो । वो भी चाहता है कि जिस तरह उसने हमें थामा है , हम भी उसे कस के पकड़ें । हम भी उसे गले लगायें और एक बार दिल से कहें – “थैंक यू टाइपिस्ट “ । चलिये हम एक बार उसे ये बोल के देखते हैं । उसका चेहरा तो खिलेगा ही , हमें भी कोई कम तसल्ली नहीं होगी ।
-आशीष मनु रीता
(लेखक पेशे से इंजिनियर हैं; सासाराम, बिहार के रहने वाले हैं.)
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